मैं खुद को ढूंढ रहा हूँ,कोई तो बताए जरा । यह कौन जख्म है जो,भरता नहीं रहता है हरा । कल फिर से स्वाभिमान से, करना समझौता होगा । कल फिर एक घमंडी से मिलना होगा डरा डरा ।। कवि मानव अज्ञानी #Studentlove