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मैं खुद को ढूंढ रहा हूँ,कोई तो बताए जरा । यह कौन ज

मैं खुद को ढूंढ रहा हूँ,कोई तो बताए जरा ।
यह कौन जख्म है जो,भरता नहीं रहता है हरा ।
कल फिर से स्वाभिमान से, करना समझौता होगा ।
कल फिर एक घमंडी से मिलना होगा डरा डरा ।।
कवि मानव अज्ञानी #Studentlove
मैं खुद को ढूंढ रहा हूँ,कोई तो बताए जरा ।
यह कौन जख्म है जो,भरता नहीं रहता है हरा ।
कल फिर से स्वाभिमान से, करना समझौता होगा ।
कल फिर एक घमंडी से मिलना होगा डरा डरा ।।
कवि मानव अज्ञानी #Studentlove
manavagyani1830

Manav Agyani

New Creator