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मयकशी, जाम, मैकदे से सरोकार नहीं,   ग़र

   मयकशी, जाम,  मैकदे  से   सरोकार  नहीं, 
  ग़र  वो  नजरों से  पिलायें  मुझे इंकार नहीं।
  हिसाब  कितना भी  रक्खें  नफा  न पायेंगे, 
  मियाँ  ये  इश्क  मुनाफ़े  का  कारोबार नहीं।
   बदलते  वक्त  संग  बदलीं  कहानियां  सारी, 
   अब  मोहब्बत में  कोई मिटने को तैयार नहीं।
    उनके  चेहरे से ही  जाहिर है  तबीयत उनकी, 
   जितना दिखते हैं  मगर उतने भी बीमार नहीं।

©कवि आलोक मिश्र "दीपक"
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