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प्रिय पाठिका..! लेते ही हाथों में पत्र तुम्हारा



प्रिय पाठिका..!
लेते ही हाथों में पत्र तुम्हारा 
पा लिया, हथेलियों ने मेरी
स्पर्श हथेलियों का तुम्हारा..!

हाँ..
नहीं हो तुम, मेरी प्रेमिका कोई..
और न ही हो तुम, कोई कविता मेरी..!
पर पत्र में तुम्हारे..
महसूस हुई, माँ की उपस्थिति..!
तभी तुम्हारे चुंबन की..
कल्पना मात्र से ही
शिखर का एकाकीपन द्रवित हो
बह गया आँखों से मेरी..!

प्रिय पाठिका..!
तुम्हारा पत्र..
मेरे वृद्धावस्था के एकाकीपन में..
कई दिनों की मूसलाधार बारिश के बाद की 
सुखदायी धूप-सा रहा..!
वह, लहलहाती फसल के बीच
पिता की उँगली पकड़कर चलने-सा रहा..!
वह, चूल्हे पर सिके गरम फुल्के-सा
और अमिया की खट्टी-मीठी चटनी-सा रहा..!

तुम्हारे पत्र ने.. 
अनायास ही खोल दी..
मेरे गाँव की वह कच्ची पगडंडी
जिस पर मैं..
हाथों में लिए एक कविता 
नंगे पाँव ही....
सरपट..दौड़े जा रहा हूँ..!
हाँ प्रिय..! 
अब मैं किंचित भी अकेला नहीं..!!
 #कवि का प्रत्युत्तर पत्र....


प्रिय पाठिका..!
लेते ही हाथों में पत्र तुम्हारा 
कर लिया अनुभूत
स्नेहिल स्पर्श तुम्हारा..!


प्रिय पाठिका..!
लेते ही हाथों में पत्र तुम्हारा 
पा लिया, हथेलियों ने मेरी
स्पर्श हथेलियों का तुम्हारा..!

हाँ..
नहीं हो तुम, मेरी प्रेमिका कोई..
और न ही हो तुम, कोई कविता मेरी..!
पर पत्र में तुम्हारे..
महसूस हुई, माँ की उपस्थिति..!
तभी तुम्हारे चुंबन की..
कल्पना मात्र से ही
शिखर का एकाकीपन द्रवित हो
बह गया आँखों से मेरी..!

प्रिय पाठिका..!
तुम्हारा पत्र..
मेरे वृद्धावस्था के एकाकीपन में..
कई दिनों की मूसलाधार बारिश के बाद की 
सुखदायी धूप-सा रहा..!
वह, लहलहाती फसल के बीच
पिता की उँगली पकड़कर चलने-सा रहा..!
वह, चूल्हे पर सिके गरम फुल्के-सा
और अमिया की खट्टी-मीठी चटनी-सा रहा..!

तुम्हारे पत्र ने.. 
अनायास ही खोल दी..
मेरे गाँव की वह कच्ची पगडंडी
जिस पर मैं..
हाथों में लिए एक कविता 
नंगे पाँव ही....
सरपट..दौड़े जा रहा हूँ..!
हाँ प्रिय..! 
अब मैं किंचित भी अकेला नहीं..!!
 #कवि का प्रत्युत्तर पत्र....


प्रिय पाठिका..!
लेते ही हाथों में पत्र तुम्हारा 
कर लिया अनुभूत
स्नेहिल स्पर्श तुम्हारा..!

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