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क्या ढूंढ रही हो खुद में तुम ? कुछ बाकी रह गया है

क्या ढूंढ रही हो खुद में तुम ?

कुछ बाकी रह गया है क्या ?
या किसी चीज की तलाश में हो तुम

तुम ढूंढ रही हो शायद, 
उस बेपरवाह हंसी को ,
जो तुम्हारे होठों पर आ जाया करती थी I 

तुम ढूंढ रही हो, 
वो पहले से ख्वाब तुम्हारे जिनमें तुम अक्सर बह जाया करती थी I
 
तुम ढूंढ रही हो, 
आईने में उस शख्स को जो मिलता नहीं अब तुम्हारे पुकारने पे,
 
तुम को तो बसंत प्यारा था, अब पतझड़ में क्यों गुम हो तुम I 

आखिर,
 क्या ढूंढ रही हो तुम ?

©️saurvisingh

Kavya - काव्य 
Hindi Panktiyaan

©Saurvi Singh क्या ढूंढ रही हो खुद में तुम ?

कुछ बाकी रह गया है क्या ?
या किसी चीज की तलाश में हो तुम

तुम ढूंढ रही हो शायद, 
उस बेपरवाह हंसी को ,
जो तुम्हारे होठों पर आ जाया करती थी I
क्या ढूंढ रही हो खुद में तुम ?

कुछ बाकी रह गया है क्या ?
या किसी चीज की तलाश में हो तुम

तुम ढूंढ रही हो शायद, 
उस बेपरवाह हंसी को ,
जो तुम्हारे होठों पर आ जाया करती थी I 

तुम ढूंढ रही हो, 
वो पहले से ख्वाब तुम्हारे जिनमें तुम अक्सर बह जाया करती थी I
 
तुम ढूंढ रही हो, 
आईने में उस शख्स को जो मिलता नहीं अब तुम्हारे पुकारने पे,
 
तुम को तो बसंत प्यारा था, अब पतझड़ में क्यों गुम हो तुम I 

आखिर,
 क्या ढूंढ रही हो तुम ?

©️saurvisingh

Kavya - काव्य 
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©Saurvi Singh क्या ढूंढ रही हो खुद में तुम ?

कुछ बाकी रह गया है क्या ?
या किसी चीज की तलाश में हो तुम

तुम ढूंढ रही हो शायद, 
उस बेपरवाह हंसी को ,
जो तुम्हारे होठों पर आ जाया करती थी I
saurvisingh5937

Saurvi Singh

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