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"विधुर" अब समझ में आया विधुर का कैसा होता है जीवन

"विधुर"
अब समझ में आया विधुर का कैसा होता है जीवन
कट जाते है लोग मित्र समाज.
लगाते है ठहाके.करते है कटाक्ष मेरे अभावों का
जब थी जीवनसंगिनी संग में तो
मैं भी हंसता खिलखिलाता था पर अब लोगो को
मेरे हँसने पर भी शक होता हे.क्योंकि 
मैं विधुर हुँ .
जाता हूँ जिधर लग जाती टकटकी बांध निगाहें
कहाँ जाता है.किससे मिलता है.क्यों हंसता है
आपत्ति दर आपति घूरती निगाहें
जैसे अपराधी हो वो बेचारा
"विधुर" विधुर
"विधुर"
अब समझ में आया विधुर का कैसा होता है जीवन
कट जाते है लोग मित्र समाज.
लगाते है ठहाके.करते है कटाक्ष मेरे अभावों का
जब थी जीवनसंगिनी संग में तो
मैं भी हंसता खिलखिलाता था पर अब लोगो को
मेरे हँसने पर भी शक होता हे.क्योंकि 
मैं विधुर हुँ .
जाता हूँ जिधर लग जाती टकटकी बांध निगाहें
कहाँ जाता है.किससे मिलता है.क्यों हंसता है
आपत्ति दर आपति घूरती निगाहें
जैसे अपराधी हो वो बेचारा
"विधुर" विधुर