उम्मीदों की जंजीर फांसलो की लकीर हक की दीवारें और होंसले की तकरीर शुष्क पड़ चुकी हो जैसे हर चाहत कमजोर पड़ चुकी हो ईटो की इमारत हवाओं ने लिया हो रूख जैसे मोड़ खुशबू भी लगती है गायब हर ओर तलब तो आज भी है हमें, मगर सदाओ को मंजूर ही नहीं शायद इबादत की बुलंदियों पर खुदा का अभी कोई गौर नहीं आवाज़ दे कह रहा हो जैसे रुख ले देख दुनिया का गौर से कौन तेरे साथ है और कौन नहीं ©👦Mysterious Words🧒 #Workisworship #Inspiration #Moral #quates #thought