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*जिम्मेदारी का बोझ.....* चैन की नींद भी न वो सोते

*जिम्मेदारी का बोझ.....*

चैन की नींद भी न वो सोते हैं,
कल की सोच में कई फसल उम्मीद की बोते हैं।
 पल पल मरकर भी जीतें हैं  वो रोज,
*जिन पर होता है जिम्मेदारी का बोझ,*

धूप की तपन में चेहरा झुलस जाता है,
काम के दबाव में  दिमाग पूरा उलझ जाता है। 
शरीर के कई हिस्से में भी आ जाती  है मोच,
ठोकर खाकर भी सम्हलता है वो,
*जिन पर होता है जिम्मेदारी का बोझ।*

 अपनों के चेहरे पर लाने को मुस्कुराहट,
अपनी कई इच्छाओं का दमन कर जाते है,
सुबह जल्दी निकलने की फिक्र में,
 कभी खाली पेट ही निकल जाते हैं,
रहती हमेशा उन्हें कामयाबी के राह की खोज,
एक पल को आराम न करता,
*जिन पर होता है जिम्मेदारी का बोझ*

 
चाहे दुख के बादल भी छा जाये,
हरपल ही हँसते है वो,
परिवार के दिलों में ताउम्र,
बसते है वो। 
लाख गाली खाते बॉस से फिर भी,
न रखते कभी गलत सोच,
वजन की बेड़ियाँ  बांधकर चलते,
* जिन पर  होता है जिम्मेदारी का बोझ।*

*....✍️अनिता सुभाष देशमुख* *जिम्मेदारी का बोझ*
*जिम्मेदारी का बोझ.....*

चैन की नींद भी न वो सोते हैं,
कल की सोच में कई फसल उम्मीद की बोते हैं।
 पल पल मरकर भी जीतें हैं  वो रोज,
*जिन पर होता है जिम्मेदारी का बोझ,*

धूप की तपन में चेहरा झुलस जाता है,
काम के दबाव में  दिमाग पूरा उलझ जाता है। 
शरीर के कई हिस्से में भी आ जाती  है मोच,
ठोकर खाकर भी सम्हलता है वो,
*जिन पर होता है जिम्मेदारी का बोझ।*

 अपनों के चेहरे पर लाने को मुस्कुराहट,
अपनी कई इच्छाओं का दमन कर जाते है,
सुबह जल्दी निकलने की फिक्र में,
 कभी खाली पेट ही निकल जाते हैं,
रहती हमेशा उन्हें कामयाबी के राह की खोज,
एक पल को आराम न करता,
*जिन पर होता है जिम्मेदारी का बोझ*

 
चाहे दुख के बादल भी छा जाये,
हरपल ही हँसते है वो,
परिवार के दिलों में ताउम्र,
बसते है वो। 
लाख गाली खाते बॉस से फिर भी,
न रखते कभी गलत सोच,
वजन की बेड़ियाँ  बांधकर चलते,
* जिन पर  होता है जिम्मेदारी का बोझ।*

*....✍️अनिता सुभाष देशमुख* *जिम्मेदारी का बोझ*

*जिम्मेदारी का बोझ*