अपाहिज़
मैने देखा है एक अपाहिज़ को बिना पैरो के पहाड़िया पार करते हुऐ, और मैं बिना मोटरसायकिल के दस कदम बाज़ार जाने हिचकिचाता हूँ।
मैंने देखा है एक अपाहिज़ को बिना आंखों के बेफिक्र रास्ता पार करते हुए, और मैं छोटी सी मुश्किलों से डगमगाता हूँ।
मैन देखा है एक अपाहिज़ को बिना ज़बान के खुद को बयां करते हुए, और मैं अपनी आवाज़ को अंदर ही दबा जाता हूँ।
मैन देखा है एक अपाहिज़ को बिना कानो के जिंदगी का साज़ सुनते हुए, और मैं सुनने से कतराता हुँ के वो मेरी कमज़ोरियां बयां ना करदे।
मैन देखा है एक अपाहिज़ को खुल कर जीते हुए, और मैं अपने आप मे सिमट सा जाता हूँ।
जब मैंने देखा ग़ौर से अपने आप को, तो पता चला अपाहिज़ तो मैं हुँ, वो पूरा इंसान कहलाता है।