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प्रेम क्या हैं। प्रेम शाश्वत हैं, क्षणिक नहीं।

प्रेम क्या हैं। 

प्रेम शाश्वत हैं, क्षणिक नहीं। 
प्रेम सौम्य हैं,उग्र नहीं।
प्रेम श्लील हैं, अश्लील नहीं।
प्रेम में हास हैं, घृणा नहीं। 
प्रेम स्तुति हैं निंदा नहीं।
प्रेम सुमति हैं कुमति नहीं।
प्रेम संकल्प से होता हैं, विकल्प में नहीं।
प्रेम विस्तीर्ण मन हैं, संकीर्ण नहीं।
प्रेम मृदुल हृदय हैं, कठोर नहीं।
प्रेम में विश्वास हैं, अविश्वास नहीं। 
प्रेम चेतन हैं, जड़ नहीं। 
प्रेम स्वच्छंदतावादी हैं, परतंत्रतावादी नहीं। 
जिस प्रेम में परार्थ हैं वो प्रेम सार्थक हैं। 
और जिस प्रेम में स्वार्थ हैं वो प्रेम निरर्थक हैं।

।।फक्कड़ मिज़ाज अनपढ़ कवि सिन्टु तिवारी।।

©सिन्टु सनातनी "फक्कड़ "
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