उठा लो गांडीव हे पार्थ ********************* सच है की युद्ध कोई पर्याय नहीं, पर बिन इसके अब उपाय नहीं। संकट में जब पड़ा हो अपना देश, कहां शोभती तब दया शांति वेश। हो रहा हरपल मानवता का संहार संयम साहस को कर रहा ललकार। नहीं पाप कोई, है अब पूण्य यही आतंक के खिलाफ उठाना हथियार। देख अपनो को खड़ा कुरुक्षेत्र में अर्जुन ने जब युद्ध से किया इनकार कृष्ण ने तब भरी हुँकार उठा लो गांडीव हे पार्थ! कर डालो दुष्टों का संहार परिस्थितियां फिर है वही हो रहे धमाके, बंदूके बरस रही दहशत में जिन्दगी बसर रही उजड़ गयी है माँग कितनी गोदें कितनी हो गयी सूनी। शांति की राह में मिला है धोखा इन पथरायी आंखों मे आंसू नही खून का है कतरा सूखा बूढ़ी नजरों को है बेटे का इंतजार खड़ी है बहनें लिए राखी का प्यार इन अबलाओं के आँचल है खाली मेंहदी से पहले उजड़ी सुहाग की लाली किसी आतंकी उग्रवादी को नहीं क्षमा अधिकार समय कह रहा है फिर से बारम्बार अमन चैन की खातिर उठा लो गांडीव हे पार्थ। कर डालो दुष्टों का संहार। ©पंकज भूषण पाठक "प्रियम "