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तुम बड़े हो ना! तुम कर सकते हो कुछ भी! मुझे सिवाय स

तुम बड़े हो ना!
तुम कर सकते हो कुछ भी!
मुझे सिवाय सर झुकाने के
नहीं करना हैं कुछ भी?
मुझे सुनना हैं केवल मूक बधिर बनकर।
तुम बड़े होने के नाते,
इल्जाम लगा सकते हो कुछ भी!
देनी नहीं हैं मुझे सफाई,
क्योंकि नहीं हैं उसका कोई फायदा
तुम बड़े होना?
तुम्हारी स्मृति के खजाने में
हैं संचित कई ऐसे इल्जाम?
जो काफी हैं मुझे
पतित साबित करने के लिए
मेरा छोटा होना ही काफी हैं,
कटघरे में खड़े होने के लिए।

©Kamlesh Kandpal
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