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मैं टूटकर फिर उग आना चाहता हूँ जैसे बेहया का पौधा

मैं टूटकर
फिर उग आना चाहता हूँ
जैसे बेहया का पौधा

मैं तूफानों से
चाहता हूँ उलझना
जैसे कोई काठ की नाव

मैं सीने से
ऐसे लगना चाहता हूँ 
जैसे नदी मिलती सागर से

मैं लोगों के मस्तिष्क में 
ऐसे बसना चाहता हूँ 
जैसे हो कोई धर्म

मै मर कर भी
जीना चाहता हूँ
जैसे कोई किताब । ♥️ Challenge-509 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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♥️ इस विषय को अपने शब्दों से सजाइए। 

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मैं टूटकर
फिर उग आना चाहता हूँ
जैसे बेहया का पौधा

मैं तूफानों से
चाहता हूँ उलझना
जैसे कोई काठ की नाव

मैं सीने से
ऐसे लगना चाहता हूँ 
जैसे नदी मिलती सागर से

मैं लोगों के मस्तिष्क में 
ऐसे बसना चाहता हूँ 
जैसे हो कोई धर्म

मै मर कर भी
जीना चाहता हूँ
जैसे कोई किताब । ♥️ Challenge-509 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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