एक साधु जंगल में अपनी कुटिया बनाकर रहता था। एक दिन अचानक जोरों की वर्षा होने लगी।साधु ने कुटिया के दरवाजे को खोल दिया।राहगीर वर्षा से बचने के लिए साधु की कुटिया में आने लगे।कुटिया काफी छोटी थी। धीरे-धीरे कुटिया भरने लगी।पुनः कुछ राहगीर आ गये।एक राहगीर ने आवाज लगाई साधु महाराज मैं बरसात में भीग रहा हूं। मेरे साथ पत्नी और बच्चे हैं।कृपा कर दरवाजा खोलिए और हम लोगों को बचा लीजिए। कुटिया में पहले से मौजूद राहगीर साधु से बोल उठे।बाबा अब दरवाजा नहीं खोलिएगा।यहां पर जगह नहीं बची है।बाहर खड़े उस राहगीर से कह दीजिए कि कहीं और दूसरी जगह चला जाए। अगर वो लोग यहां आ गए तो हम सब को बाहर निकलना पड़ेगा। और हम लोग उनकी जगह भीग जाएंगे।साधु ने मना करने के बावजूद दरवाजा खोल दिया और बरसात में भींगते हुए राहगीर को प्रवेश कराते हुए खुद बाहर निकल गए। साधु ने पहले राहगीर से कहा यदि यही व्यवहार तुम्हारे साथ भी होती तो तुम भींगने से कैसे बचते?विपत्ति के समय यदि हम किसी भी कीमत पर बचना चाहते हैं तो हमें दूसरों के बचने के बारे में भी सोचना चाहिए। स्वार्थ में हम खुद के बारे में तो सोचते हैं परंतु दूसरों के बारे में सोचना बंद कर देते हैं।साधु की बात सभी राहगीर को समझ में आ गई थी। ©S Talks with Shubham Kumar स्वार्थ नहीं #writings