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ऐसा माना जाता है कि बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराण

ऐसा माना जाता है कि बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराणिक मुनिदेव व्यास के पुत्र शुकदेव के जन्म के समय बताया जाता है !! 🌞🌞
{Bolo Ji Radhey Radhey}
बाबा बालक नाथ जी मंदिर :-🌱 भारत 33 प्रकार के देवी-देवताओं की भूमि है। जिनके प्रति सभी लोगों की अपनी-अपनी मान्यतायें हैं। कहते हैं जब किसी का भाग्योदय होता है तो उस इंसान का जन्म भारत की पवित्र भूमि पर होता है। क्योंकि भारत कोई सामान्य भूमि नहीं बल्कि धर्म की भूमि है। इस धरती पर अनेक देवी -देवताओं और साधू-संतों ने जन्म लिया है। ये धरती संस्कृति और संस्कार की भूमि है। वैसे भी हिमाचल प्रदेश की भूमि देवताओं के घर के रूप में जानी जाती है। हिमाचल में 2000 से भी अधिक मंदिर हैं इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जो विश्व में प्रमुख और आकर्षण का कारण बने हुए हैं।

🌱 हिमाचल प्रदेश के हर गाँव में अलग-अलग देवता है और इनके प्रति लोगों की अपनी एक अलग आस्था है। हिमाचल में वैसे तो सभी धर्मों के लोग रहते हैं लेकिन यहाँ सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म को माना जाता है, यहाँ आपको सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म के लोग मिलेंगे। इसलिए यहाँ सबसे ज्यादा हिन्दू मंदिर ही हैं। जिनमें से कुछ मन्दिर तो विश्व प्रसिद्ध है। आज हम आपको हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर जिले के प्रसिद्ध मंदिर बाबा बालक नाथ जी के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। ये मंदिर विश्व प्रसिद्ध मंदिर है।

🌱 हिमाचल प्रदेश में बहुत से धर्मस्थल हैं, जिनमें बाबा बालक नाथ धाम दियोट सिद्ध उत्तरी भारत में एक दिव्य सिद्ध पीठ है। ये पीठ हमीरपुर से 45 km दूर दयोट सिद्ध नाम की पहाड़ी पर स्थित है। इसका सारा प्रंबध हिमाचल सरकार के अंडर है। भारत देश में 33 प्रकार के देवी-देवताओं के अलावा 9 नाथ और 84 सिद्ध भी हैं जो सहस्त्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में वे लोक में विचरण करते हैं। शास्त्रों के मुताविक पुराण के छठे स्कंद के सातवें अध्याय में बताया गया है कि देवराज इंद्र की सेवा में जहां देवगण और अन्य सहायकगण थे।

🌱 वहीं सिद्ध भी शामिल थे और नाथों में गुरु गोरखनाथ एंव 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम आता है। बाबा बालक नाथ जी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के चकमोह गाँव की पहाड़ी के ऊपर स्थित है। इस मंदिर में पहाड़ी के बीच एक प्राकृतिक गुफा है। इस गुफा के बारे में ऐसा कहा जाता है कि ये गुफा बाबा जी का आवास स्थान था। बाबा बालक नाथ मंदिर में बाबा जी की एक मूर्ति भी है, सभी श्रद्धालु बाबाजी की वेदी में रोट चढाते हैं।

🌱 रोट को आटे और चीनी/गुड को घी में मिलाकर बनाया जाता है। हालांकि बाबा जी के मंदिर में बकरा भी चढ़ाया जाता है। बकरा बाबा जी के प्रेम का प्रतीक है, मंदिर में बकरे की बलि नहीं दी जाती बल्कि बकरे का पालन-पोषण किया जाता है। बाबा बालक नाथ मंदिर के 6 km आगे एक स्थान शाहतलाई स्थित है, ऐसी मान्यता है, कि इसी जगह बाबाजी ध्यानयोग किया करते थे।

🌱 बाबा जी की गुफा में महिलाओं का जाना मना है लेकिन बाबा जी के दर्शन के लिए गुफा के बिलकुल सामने एक ऊँचा चबूतरा बनाया गया है, जहाँ से महिलाएँ उनके दूर से दर्शन कर सकती हैं।क्योंकि बाबाजी ने सारी उम्र ब्रह्मचर्य का पालन किया है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनकी महिला भक्त गर्भगुफा में प्रवेश नहीं करती जो कि प्राकृतिक गुफा में स्थित है जहाँ पर बाबाजी तपस्याकरते हुए अंतर्ध्यान हो गए थे।

बाबा बालक नाथ जी मंदिर का इतिहास :-🌱 ऐसा माना जाता है कि बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराणिक मुनिदेव व्यास के पुत्र शुकदेव के जन्म के समय बताया जाता है। जब शुकदेव मुनि का जन्म हुआ था उसी समय 84 सिद्धों ने विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया था। इन सभी में सबसे उच्च बाबा बालक नाथ भी एक हुए। बाबा बालक नाथ गुरु दत्तात्रेय के शिष्य थे। 84 सिद्धों का समय आठवीं से 12वीं सदी के बीच माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि चंबा के राजा साहिल वर्मन के राज्यकाल जोकि दसवीं शताब्दीं का है, के समय 84 सिद्ध भरमौर गए थे। ये सब सिद्ध जिस स्थान पर रुके थे, वो स्थान आज भी भरमौर चौरासी के नाम से विख्यात है। 9 वीं शताब्दी ही ङ्क्षहदी साहित्य में सरहपा, शहपा, लूईपा आदि कुछ सिद्ध संतों की वाणियां मिलती हैं।

🌱 बाबा जी की कहानी बाबा बालक नाथ की अमर कथा में पढ़ी जा सकती है। ऐसा माना जाता है कि बाबा बालक नाथ का जन्म सभी युगों में हुआ है जैसे कि सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग, और वर्तमान में कलयुग। हर रक युग में उनको एक अलग नाम से जाना गया जैसे सतयुग में स्कन्द, त्रेता युग में कौल और द्वापर युग में महाकौल के नाम से जाने गये। बाबा जी ने अपने हर अवतार में गरीबों एवं निस्सहायों की सहायता करके उनके दुख दर्द और तकलीफों का नाश किया। ये अपने हर एक जन में भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त कहलाए।

🌱 माना जाता है कि द्वापर युग में, महाकौल जिस समय कैलाश पर्वत जा रहे थे, रास्ते में उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई, उसने बाबा जी से गन्तव्य में जाने का अभिप्राय पूछा, जब वृद्ध स्त्री को बाबाजी की इच्छा का पता चला कि वह भगवान शिव से मिलने जा रहे हैं तो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे तपस्या करने की सलाह दी और माता पार्वती, (जो कि मानसरोवर नदी में अक्सर स्नान के लिए आया करती थीं) से उन तक पहुँचने का उपाय पूछने के लिए कहा।

🌱 बाबा बालक नाथ ने ठीक वैसा ही किया, इसके बाद नाना जी भगवान शिव से मिलने में सफल हुए। भगवान शिव बालयोगी महाकौल को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बाबाजी को कलयुग तक भक्तों के बीच सिद्ध प्रतीक के तौर से पूजे जाने का आशिर्वाद प्रदान किया। भगवान शिव ने उनको चिर आयु तक उनकी छवि को बालक की छवि के तौर पर बने रहने का भी आशिर्वाद दिया। ऐसा आना जाता है कि वर्तमान युग यानी कलियुग में बाबा बालक नाथ जी ने गुजरात, काठियाबाद में देव के नाम से जन्म लिया।

🌱 बाबा जी की माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम वैष्णो वैश था। बाबा जी बचपन से ही आध्यात्म में लीन रहते थे। ये सब देखकर उनके माता-पिता ने उनका विवाह करना चाहा लेकिन बाबा जी ने उनकी बात नहीं मानी और घर परिवार छोड़कर परम सिद्धी की राह पर निकल पड़े। एक दिन उनका सामना जूनागढ़ की गिरनार पहाडी में स्वामी दत्तात्रेय से हुआ। इसी स्थान पर बाबाजी ने स्वामी दत्तात्रेय से सिद्ध की बुनियादी शिक्षा ग्रहण करी और सिद्ध बने, यही वो समय है जब बाबा जी को बाबा बालकनाथ जी के नाम से पुकारा जाने लगा।

🌱 ऐसा माना जाता है कि वर्तमान में बाबा जी भ्रमण करते हुए शाहतलाई (जिला बिलासपुर) नामक स्थान पर पहुँच गये थे। हालांकि श्रद्धालुओं में ऐसी धारणा है कि बाबा बालक नाथ जी 3 वर्ष की अल्पायु में ही अपना घर छोड़ कर चार धाम की यात्रा करते-करते शाहतलाई पहुंचे थे। ऐसा माना जाता है कि शाहतलाई में ही रहने वाली एक महिला जिसका ना रत्नों था उसकी कोई सन्तान नहीं थी उसने बाबा जी को अपना धर्म का पुत्र बनाया था। बाबा बालक नाथ जी ने 12 सालों तक माता रत्नों की गायें चराई इसके बदले में माता रत्नों बाबाजी को रोटी और लस्सी खाने को देती थी।

🌱 ऐसी मान्यता है कि बाबाजी अपनी तपस्या में इतने लीन रहते थे कि रत्नो द्वारा दी गयी रोटी और लस्सी खाना याद ही नहीं रहता था। एक बार की बात है माता रत्नों बाबा जी की आलोचना कर रही थी कि वह गायों का ठीक से ख्याल नहीं रखते जबकि रत्नो बाबाजी के खाने पीने का खूब ध्यान रखतीं हैं। माता रत्नों के ताना मारने के बाद बाबा जी ने खेतों में खड़ीं लहलहाती फसल दिखा दी। जब बाबा ने धूना स्थल पर चिमटा मारा तो तने के खोल से बारह वर्ष की संचित रोटियां भी निकल आईं, दूसरा चिमटा धरती पर मारा तो छाछ का फुहारा निकलने लगा।

🌱 वहां छाछ का तालाब बन गया जिस कारण यह स्थान छाछतलाई कहलाया और फिर शाहतलाई हो गया। ऐसा कहा जाता है कि जिस स्थान पर लस्सी का तलाब बना हुआ है वहां बाबा जी का चिमटा आज भी गड़ा है। प्राचीन वट वृक्ष और इसके नीचे का धूना बाबा जी की धरोहर के रूप में जाना जाता है। इस वट वृक्ष से 800 मीटर की दुरी पर तलाई बाज़ार है जिसके एक कोने में गरुना झाडी मंदिर स्थित है। इस झाडी की उम्र सिर्फ 50 साल तक होती है लेकिन बाबा जी की शक्ति के द्वारा यह झाडी सदियों से वहीँ स्थित है!

🌱 ऐसा भी कहा जाता है कि एक बार गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ इस स्थान पर आ गए थे। गोरखनाथ बाब जी की शक्तियों का परिक्षण लेना चाहता था और इसी वजह से बाबा जी को कड़ी चुनौतियाँ भी दी। जिनका बाबा ने अपनी सिद्ध शक्तियों के बल पर समाधान कर दिए जाने के बाद गोरखनाथ के चेलों के साथ बल प्रयोग की स्थिति को आने से रोकते हुए बाबा जी आकाश में उड़कर धौलगिरी गुफा में आ पहुंचे तथा वहीँ समाधिस्थ हो गए।

🌱 माता रत्नों जब गरुना झाड़ी के पास आई और जब वहां बाबा जी को न पाया तो वो बाबा जी को रो-रोकर पुकारने लगी। माता की पुकार सुनकर बाबा जी एक बार फिर प्रकट हुए और समझाया के द्वापर युग में जब में कैलाश धाम जा रहा था तो तुम्हारे पास बारह घड़ी ठहरकर शंकर भगवान के दर्शन के लिए तुम से मार्गदर्शन प्राप्त किया था। उन्हीं 12 घड़ियों के बदले में मैंने बारह वर्ष तेरी गाय चराकर तुम्हारी सेवा की। तुम्हारी स्नेह भक्ति में बंधकर मैं कुछ समय गरुना की झाडी के पास रुका।

🌱 हमारा तुम्हारा नाता जितना भी था, वो अब पूरा हो गया है फिर भी में जानता हूं कि तुम मेरे दर्शनों के लिए सदैव लालायित रहोगी। इसीलिए तुम अपने घर में मेरे नाम का आला स्थापित कर वहां धूप बत्ती कर मेरी पुकार किया करना में तुम्हे दर्शन दिया करूंगा। इसके बाद माता रत्नों ने अपने घर में बाबा जी का आला बनाया वहां वह पूजा किया करती और महीने के प्रथम रविवार को रोट चढाया करती और फिर आला के पास बाबा जी माता रत्नों को दर्शन दिया करते थे।यही वजह है कि बाबा जी के श्रद्धालु अपने-अपने घर में बाबा जी के नाम के आले स्थापित करते हैं।

🌱 ऐसी मान्यता है कि बाबा बालक नाथ जी ने अपने चिमटे के द्वारा पहाड़ी को चीर के खड्ड का प्रवाह दूसरी तरफ मोड़ दिया था। तभी से इस स्थान को नाम घेरा के नाम से जाना जाता है।जैसे बाबा बालक नाथ जी सिद्धपीठ दियोट सिद्ध की प्रसिद्धि दूर दूर तक है, वैसे ही शाहतलाई (यहां बाबा बालक नाथ ने 12 वर्ष गायें चराई), बाबा जी की सिद्ध भूमि के रूप में दूर दूर तक मान्यता प्राप्त है। बाबा जी की पूजा आरती लोक विधान से धूप पात्र में धूप जलाकर की जाती है। पूजा के समय ऊँचे स्वर में कुछ बोला या गाया नहीं जाता।

बाबा बालक नाथ जी के मंदिर खुलने का समय :-🌱 आप बाबा बालक नाथ मंदिर में दर्शन के लिए सप्ताह के किसी भी दिन आ सकते हैं। बाबा जी का मंदिर 5:00 AM – 8:00 PM तक खुला रहता है।

बाबा बालक नाथ जी मंदिर की मान्यता :-🌱बाबा जी के मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहाँ भक्त मन में जो भी इच्छा लेकर जाए वह अवश्य पूरी होती है। बाबा जी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं इसलिए देश-विदेश व दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा जी के मंदिर में उनके दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं।

बाबा बालक नाथ जी मंदिर कहाँ स्थित है :-🌱 हिमाचल प्रदेश की पावन धरती पर बहुत से सिद्ध तीर्थस्थल प्रतिष्ठित हैं। इनमें बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम दियोटसिद्ध उत्तरी भारत का दिव्य सिद्ध पीठ है। हमीरपुर जिला के धौलागिरी पर्वत के सुरम्य शिखर पर सिद्ध बाबा बालक नाथ जी की पावन गुफा स्थापित है। बाबा बालक नाथ में देश व विदेश से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्वालु बाबा जी का आशीर्वाद के लिए पहुंचते हैं।

बाबा बालक नाथ जी का प्रसाद :- 
🌱 बाबा बालक नाथ का मनपसन्द पकबान रोट है, क्योंकि माता रत्नों बाबा जी को रोट और लस्सी लेकर जाती थी। जब बाबा बालक नाथ माता रत्नो के यहाँ गाये चराने की नौकरी करते थे।

बाबा बालक नाथ जी मंदिर मेला :-
🌱 बाबा बालक नाथ मंदिर में चैत्र माह में एक हफ्ते तक मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें श्रद्धालु देश क्र हर होने से बड़ी संख्या में आते हैं और बाबा जी के दर्शन करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

©N S Yadav GoldMine ऐसा माना जाता है कि बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराणिक मुनिदेव व्यास के पुत्र शुकदेव के जन्म के समय बताया जाता है !! 🌞🌞
{Bolo Ji Radhey Radhey}
बाबा बालक नाथ जी मंदिर :-🌱 भारत 33 प्रकार के देवी-देवताओं की भूमि है। जिनके प्रति सभी लोगों की अपनी-अपनी मान्यतायें हैं। कहते हैं जब किसी का भाग्योदय होता है तो उस इंसान का जन्म भारत की पवित्र भूमि पर होता है। क्योंकि भारत कोई सामान्य भूमि नहीं बल्कि धर्म की भूमि है। इस धरती पर अनेक देवी -देवताओं और साधू-संतों ने जन्म लिया है। ये धरती संस्कृति और संस्कार की भूमि है। वैसे भी हिमाचल प्रदेश की भूमि देवताओं के घर के रूप में जानी जाती है। हिमाचल में 2000 से भी अधिक मंदिर हैं इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जो विश्व में प्रमुख और आकर्षण का कारण बने हुए हैं।

🌱 हिमाचल प्रदेश के हर गाँव में अलग-अलग देवता है और इनके प्रति लोगों की अपनी एक अलग आस्था है। हिमाचल में वैसे तो सभी धर्मों के लोग रहते हैं लेकिन यहाँ सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म को माना जाता है, यहाँ आपको सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म के लोग मिलेंगे। इसलिए यहाँ सबसे ज्यादा हिन्दू मंदिर ही हैं। जिनमें से कुछ मन्दिर तो विश्व प्रसिद्ध है। आज हम आपको हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर जिले के प्रसिद्ध मंदिर बाबा बालक नाथ जी के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। ये मंदिर विश्व प्रसिद्ध मंदिर है।

🌱 हिमाचल प्रदेश में बहुत से धर्मस्थल हैं, जिनमें बाबा बालक नाथ धाम दियोट सिद्ध उत्तरी भारत में एक दिव्य सिद्ध पीठ है। ये पीठ हमीरपुर से 45 km दूर दयोट सिद्ध नाम की पहाड़ी पर स्थित है। इसका सारा प्रंबध हिमाचल सरकार के अंडर है। भारत देश में 33 प्रकार के देवी-देवताओं के अलावा 9 नाथ और 84 सिद्ध भी हैं जो सहस्त्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में वे लोक में विचरण करते हैं। शास्त्रों के मुताविक पुराण के छठे स्कंद के सातवें अध्याय में बताया गया है कि देवराज इंद्र की सेवा में जहां देवगण और अन्य सहायकगण थे।
ऐसा माना जाता है कि बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराणिक मुनिदेव व्यास के पुत्र शुकदेव के जन्म के समय बताया जाता है !! 🌞🌞
{Bolo Ji Radhey Radhey}
बाबा बालक नाथ जी मंदिर :-🌱 भारत 33 प्रकार के देवी-देवताओं की भूमि है। जिनके प्रति सभी लोगों की अपनी-अपनी मान्यतायें हैं। कहते हैं जब किसी का भाग्योदय होता है तो उस इंसान का जन्म भारत की पवित्र भूमि पर होता है। क्योंकि भारत कोई सामान्य भूमि नहीं बल्कि धर्म की भूमि है। इस धरती पर अनेक देवी -देवताओं और साधू-संतों ने जन्म लिया है। ये धरती संस्कृति और संस्कार की भूमि है। वैसे भी हिमाचल प्रदेश की भूमि देवताओं के घर के रूप में जानी जाती है। हिमाचल में 2000 से भी अधिक मंदिर हैं इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जो विश्व में प्रमुख और आकर्षण का कारण बने हुए हैं।

🌱 हिमाचल प्रदेश के हर गाँव में अलग-अलग देवता है और इनके प्रति लोगों की अपनी एक अलग आस्था है। हिमाचल में वैसे तो सभी धर्मों के लोग रहते हैं लेकिन यहाँ सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म को माना जाता है, यहाँ आपको सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म के लोग मिलेंगे। इसलिए यहाँ सबसे ज्यादा हिन्दू मंदिर ही हैं। जिनमें से कुछ मन्दिर तो विश्व प्रसिद्ध है। आज हम आपको हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर जिले के प्रसिद्ध मंदिर बाबा बालक नाथ जी के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। ये मंदिर विश्व प्रसिद्ध मंदिर है।

🌱 हिमाचल प्रदेश में बहुत से धर्मस्थल हैं, जिनमें बाबा बालक नाथ धाम दियोट सिद्ध उत्तरी भारत में एक दिव्य सिद्ध पीठ है। ये पीठ हमीरपुर से 45 km दूर दयोट सिद्ध नाम की पहाड़ी पर स्थित है। इसका सारा प्रंबध हिमाचल सरकार के अंडर है। भारत देश में 33 प्रकार के देवी-देवताओं के अलावा 9 नाथ और 84 सिद्ध भी हैं जो सहस्त्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में वे लोक में विचरण करते हैं। शास्त्रों के मुताविक पुराण के छठे स्कंद के सातवें अध्याय में बताया गया है कि देवराज इंद्र की सेवा में जहां देवगण और अन्य सहायकगण थे।

🌱 वहीं सिद्ध भी शामिल थे और नाथों में गुरु गोरखनाथ एंव 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम आता है। बाबा बालक नाथ जी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के चकमोह गाँव की पहाड़ी के ऊपर स्थित है। इस मंदिर में पहाड़ी के बीच एक प्राकृतिक गुफा है। इस गुफा के बारे में ऐसा कहा जाता है कि ये गुफा बाबा जी का आवास स्थान था। बाबा बालक नाथ मंदिर में बाबा जी की एक मूर्ति भी है, सभी श्रद्धालु बाबाजी की वेदी में रोट चढाते हैं।

🌱 रोट को आटे और चीनी/गुड को घी में मिलाकर बनाया जाता है। हालांकि बाबा जी के मंदिर में बकरा भी चढ़ाया जाता है। बकरा बाबा जी के प्रेम का प्रतीक है, मंदिर में बकरे की बलि नहीं दी जाती बल्कि बकरे का पालन-पोषण किया जाता है। बाबा बालक नाथ मंदिर के 6 km आगे एक स्थान शाहतलाई स्थित है, ऐसी मान्यता है, कि इसी जगह बाबाजी ध्यानयोग किया करते थे।

🌱 बाबा जी की गुफा में महिलाओं का जाना मना है लेकिन बाबा जी के दर्शन के लिए गुफा के बिलकुल सामने एक ऊँचा चबूतरा बनाया गया है, जहाँ से महिलाएँ उनके दूर से दर्शन कर सकती हैं।क्योंकि बाबाजी ने सारी उम्र ब्रह्मचर्य का पालन किया है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनकी महिला भक्त गर्भगुफा में प्रवेश नहीं करती जो कि प्राकृतिक गुफा में स्थित है जहाँ पर बाबाजी तपस्याकरते हुए अंतर्ध्यान हो गए थे।

बाबा बालक नाथ जी मंदिर का इतिहास :-🌱 ऐसा माना जाता है कि बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराणिक मुनिदेव व्यास के पुत्र शुकदेव के जन्म के समय बताया जाता है। जब शुकदेव मुनि का जन्म हुआ था उसी समय 84 सिद्धों ने विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया था। इन सभी में सबसे उच्च बाबा बालक नाथ भी एक हुए। बाबा बालक नाथ गुरु दत्तात्रेय के शिष्य थे। 84 सिद्धों का समय आठवीं से 12वीं सदी के बीच माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि चंबा के राजा साहिल वर्मन के राज्यकाल जोकि दसवीं शताब्दीं का है, के समय 84 सिद्ध भरमौर गए थे। ये सब सिद्ध जिस स्थान पर रुके थे, वो स्थान आज भी भरमौर चौरासी के नाम से विख्यात है। 9 वीं शताब्दी ही ङ्क्षहदी साहित्य में सरहपा, शहपा, लूईपा आदि कुछ सिद्ध संतों की वाणियां मिलती हैं।

🌱 बाबा जी की कहानी बाबा बालक नाथ की अमर कथा में पढ़ी जा सकती है। ऐसा माना जाता है कि बाबा बालक नाथ का जन्म सभी युगों में हुआ है जैसे कि सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग, और वर्तमान में कलयुग। हर रक युग में उनको एक अलग नाम से जाना गया जैसे सतयुग में स्कन्द, त्रेता युग में कौल और द्वापर युग में महाकौल के नाम से जाने गये। बाबा जी ने अपने हर अवतार में गरीबों एवं निस्सहायों की सहायता करके उनके दुख दर्द और तकलीफों का नाश किया। ये अपने हर एक जन में भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त कहलाए।

🌱 माना जाता है कि द्वापर युग में, महाकौल जिस समय कैलाश पर्वत जा रहे थे, रास्ते में उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई, उसने बाबा जी से गन्तव्य में जाने का अभिप्राय पूछा, जब वृद्ध स्त्री को बाबाजी की इच्छा का पता चला कि वह भगवान शिव से मिलने जा रहे हैं तो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे तपस्या करने की सलाह दी और माता पार्वती, (जो कि मानसरोवर नदी में अक्सर स्नान के लिए आया करती थीं) से उन तक पहुँचने का उपाय पूछने के लिए कहा।

🌱 बाबा बालक नाथ ने ठीक वैसा ही किया, इसके बाद नाना जी भगवान शिव से मिलने में सफल हुए। भगवान शिव बालयोगी महाकौल को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बाबाजी को कलयुग तक भक्तों के बीच सिद्ध प्रतीक के तौर से पूजे जाने का आशिर्वाद प्रदान किया। भगवान शिव ने उनको चिर आयु तक उनकी छवि को बालक की छवि के तौर पर बने रहने का भी आशिर्वाद दिया। ऐसा आना जाता है कि वर्तमान युग यानी कलियुग में बाबा बालक नाथ जी ने गुजरात, काठियाबाद में देव के नाम से जन्म लिया।

🌱 बाबा जी की माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम वैष्णो वैश था। बाबा जी बचपन से ही आध्यात्म में लीन रहते थे। ये सब देखकर उनके माता-पिता ने उनका विवाह करना चाहा लेकिन बाबा जी ने उनकी बात नहीं मानी और घर परिवार छोड़कर परम सिद्धी की राह पर निकल पड़े। एक दिन उनका सामना जूनागढ़ की गिरनार पहाडी में स्वामी दत्तात्रेय से हुआ। इसी स्थान पर बाबाजी ने स्वामी दत्तात्रेय से सिद्ध की बुनियादी शिक्षा ग्रहण करी और सिद्ध बने, यही वो समय है जब बाबा जी को बाबा बालकनाथ जी के नाम से पुकारा जाने लगा।

🌱 ऐसा माना जाता है कि वर्तमान में बाबा जी भ्रमण करते हुए शाहतलाई (जिला बिलासपुर) नामक स्थान पर पहुँच गये थे। हालांकि श्रद्धालुओं में ऐसी धारणा है कि बाबा बालक नाथ जी 3 वर्ष की अल्पायु में ही अपना घर छोड़ कर चार धाम की यात्रा करते-करते शाहतलाई पहुंचे थे। ऐसा माना जाता है कि शाहतलाई में ही रहने वाली एक महिला जिसका ना रत्नों था उसकी कोई सन्तान नहीं थी उसने बाबा जी को अपना धर्म का पुत्र बनाया था। बाबा बालक नाथ जी ने 12 सालों तक माता रत्नों की गायें चराई इसके बदले में माता रत्नों बाबाजी को रोटी और लस्सी खाने को देती थी।

🌱 ऐसी मान्यता है कि बाबाजी अपनी तपस्या में इतने लीन रहते थे कि रत्नो द्वारा दी गयी रोटी और लस्सी खाना याद ही नहीं रहता था। एक बार की बात है माता रत्नों बाबा जी की आलोचना कर रही थी कि वह गायों का ठीक से ख्याल नहीं रखते जबकि रत्नो बाबाजी के खाने पीने का खूब ध्यान रखतीं हैं। माता रत्नों के ताना मारने के बाद बाबा जी ने खेतों में खड़ीं लहलहाती फसल दिखा दी। जब बाबा ने धूना स्थल पर चिमटा मारा तो तने के खोल से बारह वर्ष की संचित रोटियां भी निकल आईं, दूसरा चिमटा धरती पर मारा तो छाछ का फुहारा निकलने लगा।

🌱 वहां छाछ का तालाब बन गया जिस कारण यह स्थान छाछतलाई कहलाया और फिर शाहतलाई हो गया। ऐसा कहा जाता है कि जिस स्थान पर लस्सी का तलाब बना हुआ है वहां बाबा जी का चिमटा आज भी गड़ा है। प्राचीन वट वृक्ष और इसके नीचे का धूना बाबा जी की धरोहर के रूप में जाना जाता है। इस वट वृक्ष से 800 मीटर की दुरी पर तलाई बाज़ार है जिसके एक कोने में गरुना झाडी मंदिर स्थित है। इस झाडी की उम्र सिर्फ 50 साल तक होती है लेकिन बाबा जी की शक्ति के द्वारा यह झाडी सदियों से वहीँ स्थित है!

🌱 ऐसा भी कहा जाता है कि एक बार गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ इस स्थान पर आ गए थे। गोरखनाथ बाब जी की शक्तियों का परिक्षण लेना चाहता था और इसी वजह से बाबा जी को कड़ी चुनौतियाँ भी दी। जिनका बाबा ने अपनी सिद्ध शक्तियों के बल पर समाधान कर दिए जाने के बाद गोरखनाथ के चेलों के साथ बल प्रयोग की स्थिति को आने से रोकते हुए बाबा जी आकाश में उड़कर धौलगिरी गुफा में आ पहुंचे तथा वहीँ समाधिस्थ हो गए।

🌱 माता रत्नों जब गरुना झाड़ी के पास आई और जब वहां बाबा जी को न पाया तो वो बाबा जी को रो-रोकर पुकारने लगी। माता की पुकार सुनकर बाबा जी एक बार फिर प्रकट हुए और समझाया के द्वापर युग में जब में कैलाश धाम जा रहा था तो तुम्हारे पास बारह घड़ी ठहरकर शंकर भगवान के दर्शन के लिए तुम से मार्गदर्शन प्राप्त किया था। उन्हीं 12 घड़ियों के बदले में मैंने बारह वर्ष तेरी गाय चराकर तुम्हारी सेवा की। तुम्हारी स्नेह भक्ति में बंधकर मैं कुछ समय गरुना की झाडी के पास रुका।

🌱 हमारा तुम्हारा नाता जितना भी था, वो अब पूरा हो गया है फिर भी में जानता हूं कि तुम मेरे दर्शनों के लिए सदैव लालायित रहोगी। इसीलिए तुम अपने घर में मेरे नाम का आला स्थापित कर वहां धूप बत्ती कर मेरी पुकार किया करना में तुम्हे दर्शन दिया करूंगा। इसके बाद माता रत्नों ने अपने घर में बाबा जी का आला बनाया वहां वह पूजा किया करती और महीने के प्रथम रविवार को रोट चढाया करती और फिर आला के पास बाबा जी माता रत्नों को दर्शन दिया करते थे।यही वजह है कि बाबा जी के श्रद्धालु अपने-अपने घर में बाबा जी के नाम के आले स्थापित करते हैं।

🌱 ऐसी मान्यता है कि बाबा बालक नाथ जी ने अपने चिमटे के द्वारा पहाड़ी को चीर के खड्ड का प्रवाह दूसरी तरफ मोड़ दिया था। तभी से इस स्थान को नाम घेरा के नाम से जाना जाता है।जैसे बाबा बालक नाथ जी सिद्धपीठ दियोट सिद्ध की प्रसिद्धि दूर दूर तक है, वैसे ही शाहतलाई (यहां बाबा बालक नाथ ने 12 वर्ष गायें चराई), बाबा जी की सिद्ध भूमि के रूप में दूर दूर तक मान्यता प्राप्त है। बाबा जी की पूजा आरती लोक विधान से धूप पात्र में धूप जलाकर की जाती है। पूजा के समय ऊँचे स्वर में कुछ बोला या गाया नहीं जाता।

बाबा बालक नाथ जी के मंदिर खुलने का समय :-🌱 आप बाबा बालक नाथ मंदिर में दर्शन के लिए सप्ताह के किसी भी दिन आ सकते हैं। बाबा जी का मंदिर 5:00 AM – 8:00 PM तक खुला रहता है।

बाबा बालक नाथ जी मंदिर की मान्यता :-🌱बाबा जी के मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहाँ भक्त मन में जो भी इच्छा लेकर जाए वह अवश्य पूरी होती है। बाबा जी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं इसलिए देश-विदेश व दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा जी के मंदिर में उनके दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं।

बाबा बालक नाथ जी मंदिर कहाँ स्थित है :-🌱 हिमाचल प्रदेश की पावन धरती पर बहुत से सिद्ध तीर्थस्थल प्रतिष्ठित हैं। इनमें बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम दियोटसिद्ध उत्तरी भारत का दिव्य सिद्ध पीठ है। हमीरपुर जिला के धौलागिरी पर्वत के सुरम्य शिखर पर सिद्ध बाबा बालक नाथ जी की पावन गुफा स्थापित है। बाबा बालक नाथ में देश व विदेश से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्वालु बाबा जी का आशीर्वाद के लिए पहुंचते हैं।

बाबा बालक नाथ जी का प्रसाद :- 
🌱 बाबा बालक नाथ का मनपसन्द पकबान रोट है, क्योंकि माता रत्नों बाबा जी को रोट और लस्सी लेकर जाती थी। जब बाबा बालक नाथ माता रत्नो के यहाँ गाये चराने की नौकरी करते थे।

बाबा बालक नाथ जी मंदिर मेला :-
🌱 बाबा बालक नाथ मंदिर में चैत्र माह में एक हफ्ते तक मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें श्रद्धालु देश क्र हर होने से बड़ी संख्या में आते हैं और बाबा जी के दर्शन करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

©N S Yadav GoldMine ऐसा माना जाता है कि बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराणिक मुनिदेव व्यास के पुत्र शुकदेव के जन्म के समय बताया जाता है !! 🌞🌞
{Bolo Ji Radhey Radhey}
बाबा बालक नाथ जी मंदिर :-🌱 भारत 33 प्रकार के देवी-देवताओं की भूमि है। जिनके प्रति सभी लोगों की अपनी-अपनी मान्यतायें हैं। कहते हैं जब किसी का भाग्योदय होता है तो उस इंसान का जन्म भारत की पवित्र भूमि पर होता है। क्योंकि भारत कोई सामान्य भूमि नहीं बल्कि धर्म की भूमि है। इस धरती पर अनेक देवी -देवताओं और साधू-संतों ने जन्म लिया है। ये धरती संस्कृति और संस्कार की भूमि है। वैसे भी हिमाचल प्रदेश की भूमि देवताओं के घर के रूप में जानी जाती है। हिमाचल में 2000 से भी अधिक मंदिर हैं इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जो विश्व में प्रमुख और आकर्षण का कारण बने हुए हैं।

🌱 हिमाचल प्रदेश के हर गाँव में अलग-अलग देवता है और इनके प्रति लोगों की अपनी एक अलग आस्था है। हिमाचल में वैसे तो सभी धर्मों के लोग रहते हैं लेकिन यहाँ सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म को माना जाता है, यहाँ आपको सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म के लोग मिलेंगे। इसलिए यहाँ सबसे ज्यादा हिन्दू मंदिर ही हैं। जिनमें से कुछ मन्दिर तो विश्व प्रसिद्ध है। आज हम आपको हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर जिले के प्रसिद्ध मंदिर बाबा बालक नाथ जी के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। ये मंदिर विश्व प्रसिद्ध मंदिर है।

🌱 हिमाचल प्रदेश में बहुत से धर्मस्थल हैं, जिनमें बाबा बालक नाथ धाम दियोट सिद्ध उत्तरी भारत में एक दिव्य सिद्ध पीठ है। ये पीठ हमीरपुर से 45 km दूर दयोट सिद्ध नाम की पहाड़ी पर स्थित है। इसका सारा प्रंबध हिमाचल सरकार के अंडर है। भारत देश में 33 प्रकार के देवी-देवताओं के अलावा 9 नाथ और 84 सिद्ध भी हैं जो सहस्त्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में वे लोक में विचरण करते हैं। शास्त्रों के मुताविक पुराण के छठे स्कंद के सातवें अध्याय में बताया गया है कि देवराज इंद्र की सेवा में जहां देवगण और अन्य सहायकगण थे।