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मेरी बस्ती, मेरी हस्ती, मुझे जान से प्यारी है । य

मेरी बस्ती, मेरी हस्ती, मुझे जान से प्यारी है । 
यहाँ का जीवन सच्चा निर्मल ,पग पग पर खुद्दारी है। 
यहाँ प्रेम मे जीत समाई, पुरखों की दुनिया मन भायी
 इसमे रहना सौभाग्य मेरा, तन मन पुलकित आभारी है ।। 
यहाँ छुपी यादें बचपन की, यहाँ ही हुई उम्र पचपन की, 
कहीं भी अपने फर्ज निभाऊँ बस्ती का कर्ज उधारी है ।। 
यहाँ हवा,मिट्टी,गली,रास्ते, मुझको लगते हैं गुलदस्ते
 प्रिय बहुत बस्ती का पानी मीठा हो चाहे खारी है ।। 
बहुमंजिला विशालकाय इमारत, हस्ती संग कर रहीं शरारत, 
किसकी नजर लगी उपवन को, किसने इसे उजारी है। 
विकास नाम पर बस्ती लुट गई, साँसें गैस चैम्बर मे घुट गईं, 
हम अपनी पहचान खो रहे, बङी अजब लाचारी है ।।
 पुष्पेन्द्र पंकज

Pushpendra Pankaj Nojoto

©Pushpendra Pankaj
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