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White छोड़कर मझधार मैं, दूर तक यूँ आ गया, चारों द

White छोड़कर मझधार मैं, दूर तक यूँ आ गया, 
चारों दिशा बस धुंध थी, कोहरा सा मानो छा गया, 
जोर से मारा जमीं पर मांझी ने पतवार को,
सोचता हूँ जाने कितने जख़्म ऐसे खा गया |

इक तरफ़ साहिल दिखा और इक तरफ़ था डूबना, 
रास्तों के द्वंद् में, पाँव भी फिसला गया, 
ले चला फिर डोर अपनी बांध कर मांझी मेरा,
प्यार के गहरे समंदर छोर को दिखला गया |

हर दफा मैं इश्क़ कर, और धोखा खा गया...

©Senty Poet
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