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छोटे से मन में उलझे,अनगिनत सवाल हैं, एक शांत झील

 छोटे से मन में उलझे,अनगिनत सवाल हैं,
एक शांत झील में मचा ,ये कैसा बवाल है,

क्या धर्म है मेरा ,मैं किस मज़हब से जुड़ी हूँ,
मैं  बिन  कुसूर  के ही, पिंजरे में क्यों पड़ी हूँ,

बताया था अब्बू ने ,कि ईश्वर अल्लाह एक हैं,
जिसमे बसती है इंसानियत ,इंसान वही नेक है,

इंसान क्यूँ इंसान की  ,बोटी  को  नोंच खा रहे,
मोहब्बत के जहान में,कौन फ़साद ये भड़का रहे,

चुपचाप सब सहने को ,क्यूँ मजबूर हो गए हम,
शांति काकी ,रामू चाचा , सबसे दूर हो गए हम,

राधा कहती थी ,कि गुड्डे और गुड़िया का ब्याह रचायेंगे,
तू अपनी गुड़िया ले आना ,हम अपना गुड्डा लेकर आयेंगे,

क्या हुआ ऐसा कि ऊंच नीच की दीवार खड़ी हो गई,
मज़हब की दुनिया , क्या इंसानियत से बड़ी हो गई,

हे ईश्वर ! या अल्लाह ,अब रोक लो इस तूफ़ान को,
वरना ये ले डूबेगा एक दिन ,इस पूरे ही जहान को ।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #क्योंमजबूरहुएहम