चार दोस्त एक शाम। बचपन की हसीन यादों के नाम।। वही गली का नुक्कड़। हर ग्रुप की तरह इसमें मे भी है एक भुक्कड़।। चार चाय , गरमागर्म पकौड़ी। समोसे जलेबी की नमकीन मीठी जोड़ी।। ढेर सारी बाते। एक दूसरे की टांग खीचने की वो आदतें।। अब न जाने फिर कब होगी बातों की ऐसी दौर। सब अब फिर निकल चुके है अपनी ही दुनिया की ओर।।