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White खुद को कैसे माटी सा बना लूँ। कैसे खुद को सां

White खुद को कैसे माटी सा बना लूँ।
कैसे खुद को सांचे में ढाल लूँ।।
अलग अलग आकार विचारो के यूँ।
कैसे मन को अपने शीतल कर दूँ।।
व्यवहार मिलते कंकर से क्यूं ।
चुभते है,बहते है आंसू से ज्यूँ ।।
कैसे खुद को सुन्दर आकार दूँ। 
जीवन को मुक्ति का आधार दूँ।।
मन में उलझने हज़ारो यूँ।
सागर मे नाव की डूबती कतारे ज्यूँ।।
कैसे पतवारो को हाथ में थाम लूँ।
 डूबती ख्वाहिशों को कैसे पार दूँ।।
 प्रयासों का सफर थकाता है क्यूं।
सब करके भी सब हाथों से जाता क्यूं ।।
चाहत नहीं बहुत कुछ पाऊं ।
बस जो पाया है,उसकी हो जाऊं।।  
बन शिल्पी मन को कर माटी सा यूँ।
जीवन को मटके सा आकार दूँ।।
कंकर सी रूकावटो को दूर करु।
तन मन तो तपा  निर्मल करु।।
फिर मूक बन एक दिन माटी में मिलूं।।
                      शिल्पी जैन

©chahat मन को कर माटी सा
White खुद को कैसे माटी सा बना लूँ।
कैसे खुद को सांचे में ढाल लूँ।।
अलग अलग आकार विचारो के यूँ।
कैसे मन को अपने शीतल कर दूँ।।
व्यवहार मिलते कंकर से क्यूं ।
चुभते है,बहते है आंसू से ज्यूँ ।।
कैसे खुद को सुन्दर आकार दूँ। 
जीवन को मुक्ति का आधार दूँ।।
मन में उलझने हज़ारो यूँ।
सागर मे नाव की डूबती कतारे ज्यूँ।।
कैसे पतवारो को हाथ में थाम लूँ।
 डूबती ख्वाहिशों को कैसे पार दूँ।।
 प्रयासों का सफर थकाता है क्यूं।
सब करके भी सब हाथों से जाता क्यूं ।।
चाहत नहीं बहुत कुछ पाऊं ।
बस जो पाया है,उसकी हो जाऊं।।  
बन शिल्पी मन को कर माटी सा यूँ।
जीवन को मटके सा आकार दूँ।।
कंकर सी रूकावटो को दूर करु।
तन मन तो तपा  निर्मल करु।।
फिर मूक बन एक दिन माटी में मिलूं।।
                      शिल्पी जैन

©chahat मन को कर माटी सा
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