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दीवारें तुम्हारी अहमियत बहुत हैं, बेशकीमती जरूरत

दीवारें

तुम्हारी अहमियत बहुत हैं,
बेशकीमती जरूरत हो तुम,
हमारे न जाने कितने,
राज़ दफन करते हो तुम।

जमाना गुजरा, वक्त बदला,
अनेक रूप में हमे मिले तुम,
ठोकरें जब भी लगी हो,
मरहम लगाने आए तुम,

निःसंकोच सब कह देते हैं,
सामने जब होते तुम,
चट्टान बनकर सदा रहना,
किसी राह में अलहदा न कर देना तुम।

©Ruchi Jha
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Ruchi Jha

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