कई बार मन में कई दुविधाओं का जन्म होता है...मन का एक हिस्सा कुछ कहता है दूसरा कुछ..... जैसे एक हिस्सा पानी तो दूसरा मरुस्थल हो.... दोनों की चाह अलग.... दोनों का अपना वजूद... किसकी माने... दोनों अपनी अपनी जगह सही..... खैर सारी दुविधाओं को जन्म हम देते है... तो हल भी स्वयं हम ही हैं.... जो समस्या मन के भीतर आकार ले उसका हल या समाधान बाहर खोजना ठीक वैसा ही है जैसे हिरण की नाभी में उपस्थित कस्तूरी को हिरण के द्वारा वन वन खोजना....
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ये सब क्या कह रही हूँ पता नहीं 😅😅😅
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