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#गुठली /लघुकथा —----------------------# "अब बस

#गुठली /लघुकथा

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"अब बस कुछ ही दिनों की बात है!.तुम्हारे अस्तित्व को भी पहचान मिल जाएगी।"

"कैसी पहचान?"

"तुम्हारे भीतर मुझसे भी विशाल एक वृक्ष छुपा है।"

फल के भीतर तैयार हो रही गुठली को अपनी आगोश में लेकर वृक्ष समझाने लगा।

अपने पोषक की बातों को गौर से सुनती वह अर्धविकसित नन्हीं गुठली चहक उठी..

"फिर मुझ पर भी फल आएंगे!"

"हांँ!.ढेर सारे फल!"

"लेकिन मैं उन फलों का करूंगी क्या?"

"वृक्ष पर लगे फल हमेशा से उपहार स्वरुप मनुष्यों को ही मिलते है।"

"मनुष्य को क्यों?"

"मनुष्य संसार का सबसे बुद्धिमान प्राणी है!.इसलिए।"

"मनुष्य हमारे दोस्त हैं?"

वहीं थोड़ी दूर पर भवन निर्माण के लिए हरे भरे वृक्षों पर आरी चला रहे लोगों की ओर देखता वह वृक्ष अचानक कुछ सोचते हुए बिना कोई जवाब दिए ही अचानक मौन हो गया। 


पुष्पा कुमारी "पुष्प" 

पुणे (महाराष्ट्र)

©पुष्प"
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