जो ज़िन्दगी गुजरी वो भी अब इक सपना है न आसमाँ न जमीं कौन यहाँ बस अपना है मैंने जलते चराग़ों को अंधेरों में देखा बहुत चली है आंधियां तो उसे भी अब परखना है जो अभी आफ़ताब सा चमक रहा है गुल में हुई जो शाम तो उसे भी रात भर भटकना है किसी ने कहा था मोहब्बत गिरी स्याह सी है एक को मन्ज़िल दूजे को उम्र भर तड़पना है मैं कहूँगा दास्तां अपनी तो हँसेगा ख़ूब वो मैं भी इस बात पर हंसू ये उसका सपना है शिवांग द्विवेदी किसी ने कहा था मोहब्बत गिरी स्याह सी है एक को मन्ज़िल दूजे को उम्र भर तड़पना है.. #shivang #love #life #hindi