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उसी समय भैया ने कराहकर पुकारा, "ज्योति!" ज्योत्स्

उसी समय भैया ने कराहकर पुकारा, "ज्योति!"

ज्योत्स्ना बढ़ने लगी। किंतु किशोर ने कठोर स्वर में कहा,
"रहने दे ज्योत्स्ना!  इन हाथों से उन्हें न छू! 
अन्यथा उनकी बीमारी कभी नहीं जाएगी। 
मैं जाता हूँ।"

और उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही वह 
भैया के कमरे में घुस गया।

ज्योत्स्ना की आँखें फटी की फटी रह गईं, 
जैसे सफेदी पर उसकी पुतलियाँ ऐसी ही थीं, मानो 
सफेद स्याही-सोख पर किसी ने 
स्याही के धब्बे डाल दिए हों, 

निस्पन्द-सी, भावहीन, शून्य और निर्जीव सी...

#विषाद_मठ #coronavirus#विषाद_मठ #रांगेय_राघव
उसी समय भैया ने कराहकर पुकारा, "ज्योति!"

ज्योत्स्ना बढ़ने लगी। किंतु किशोर ने कठोर स्वर में कहा,
"रहने दे ज्योत्स्ना!  इन हाथों से उन्हें न छू! 
अन्यथा उनकी बीमारी कभी नहीं जाएगी। 
मैं जाता हूँ।"

और उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही वह 
भैया के कमरे में घुस गया।

ज्योत्स्ना की आँखें फटी की फटी रह गईं, 
जैसे सफेदी पर उसकी पुतलियाँ ऐसी ही थीं, मानो 
सफेद स्याही-सोख पर किसी ने 
स्याही के धब्बे डाल दिए हों, 

निस्पन्द-सी, भावहीन, शून्य और निर्जीव सी...

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