"मां मैं भी मां बनूं" मां मैं भईया के जैसे, नहीं रहीं...तो क्या? मां मैं भईया के जैसे, नहीं पढ़ी...तो क्या? मां मैं भईया के जैसे, नहीं पहनी...तो क्या? मां मैं भईया के जैसे, नहीं घूमी...तो क्या? मां मैं भईया के जैसे, सौंक नहीं पाली...तो क्या? कोई शिकवा, कोई शिकायत नहीं मां .... तेरी ममता पाई, वो किसी दौलत से कम नहीं मां बस डर है, मां....... लोगों के डर से, मुझे ना ठुकराना। दे देना फटे पुराने चादर,जूठे निवाले ...मां पर लोगों के डर से , मुझे ना ठुकराना। क्योंकि....मां....मैं बेटी हू, कल बहू बन जाऊंगी। तेरी जैसी ममता , खुद में कैसे लाऊंगी। मां मैं भी मां बनूं, सब चाहते हैं। पर बेटी नहीं... बेटा जनू .... सब चाहते हैं। मां ,बता मुझको तू ना होती तो ,तो मैं ना होती फिर मैं किसी रिश्ते में ना बधती, ना होता आज पाप मुझसे मां.... जग सुना होता,ना होता इंसान मां... यहां सब रिश्ते अनमोल हैं मां... बेटी की ना मोल मां... मां मुझमें क्या कमी हैं। जो सब यहां बेटी नहीं...बेटा चाहते हैं मां मैं भी मां बनूं, सब चाहते हैं।। Pt.विकास कुमार शर्मा बिटिया दिवस पर ,बिटिया के लिए मेरी एक प्यारी सी कविता.....pt.विकास कुमार शर्मा