ख़ुशनुमा ये मक़ाम है ज़िन्दगी बे-इज़्तिराब है खुशियाँ हैं डगर डगर अपना ये आसमान है मख़मली रास्तों में अक्स-ए-नक़्श-ए-पा हैं सेहरा में जो गुलशन है वहीं अपना आस्ताँ है ख्वाबों की मंज़िल है न कोई इन्तेक़ाम है कठिन 'सफ़र' ज़िन्दगी का अब लग रहा आसान है बे-इज़्तिराब- खुश, जो उदास न हो अक्स-ए-नक़्श-ए-पा - reflection of footprints आस्ताँ-निवास, रहने का स्थान 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏 💫Collab with रचना का सार..📖