आधे चाँद कि अधूरी शाम को , अब पूरी शाम करना चाहती हूँ ; उस तुम्हारे अनछुए एहसास को अब मैं तुम्हे छूकर पूरा करना चाहती हूँ ; जो मेरे अनकहे जज़्बात है उन अनकहे , जज्बात को कहकर पूरा करना चाहती हूँ ; जिसकी हर पल बहुत याद आती है उसके बिना गुजरती अधूरी शाम को उसके साथ , गुजारकर अब पूरी करना चाहती हूँ ; आज भी कही दूर बजती घंटियों कि आवाज़ , को अकेले सुनने का जो अधूरापन है ; उन घंटियों की आवाज़ को तुम्हारे , साथ बैठ कर सुनना चाहती हूँ ; वो मेरे साथ चलती तुम्हारी अकेली परछाई को , तुम्हारा हाथ थामकर दोकली करना चाहती हूँ ; आधे चाँद कि अधूरी शाम को ; अब पूरी शाम करना चाहती हूँ ! #आधे #चांद #की #अधुरी #शाम