ओह! प्रिया कहाँ हो तुम ? ढूंढ़ता हूँ तुम्हे उन गलियों में, जहाँ मिले कभी हम तुम।। तेरे आने से रौनक बढी थी गली कि, सोचा तुझे पाकर किस्मत चमकेंगी 'सनी' की। पर क्या हुआ? खो गयी तू किस अँधेरे में। मेरा जीवन हुआ गुमसुम ।। ओह प्रिया . . . . . . . . रौनक चेहरे पे मेरे अब ना रही, मेरे जीवन में भी अब तू न रही। ढूंढ़ता हूँ तेरे कदमों के निशां, शायद ढूँढ़ लूँ ,तुम हो जहाँ। याद आये तेरा चेहरा मासूम ।। ओह प्रिया . . . . . . . . उस मोड़ पे मिलकर मुस्कुराती थी तुम, क्या याद है वो पल तुम्हे? तेरा प्यार तो न बन सका, तेरे ग़म ने 'कवि' बनाया मुझे। आवाज़ मेरी भी सुन।। ओह प्रिया . . . . . . तन्हाई में याद आती है तेरी, पढ़ता हूँ तेरे ख़त को। कभी देखूं वो सूना आँगन, कभी उस सूनी छत को। जहाँ बजी तेरी पायल कि धुन।। ओह प्रिया कहाँ हो तुम ? ढूंढ़ता हूँ तुम्हे उन गलियों में . . . सुनील पंवार #NojotoQuote कहाँ हो तुम?.....