जीवन और मृत्यु (चिंतन) जन्म व मृत्यु का चक्र अन्य प्राकृतिक नियमों की तरह परमात्मा ने बनाया है। जन्म व मृत्यु की यह व्यवस्था सृष्टि की अटल व्यवस्था है। संसार में यह नियम काम कर रहा है कि जिसका जन्म व उत्पत्ति होती है उसकी मृत्यु व नाश अवश्य ही होता है। संसार में भौतिक पदार्थों से जो भी वस्तुयें बनी हैं, वह बनने के बाद से ही पुरानी व क्षीण होने लगती हैं और कुछ काल बाद वह नष्ट हो जाती हैं मनुष्य का शरीर जड़ है और यह प्रकृति के परमाणुओं व कणों से बना हुआ है। शरीर को बनाने वाला परमात्मा है। जीवात्मा स्वयं अपने व दूसरों के शरीर की रचना नहीं कर सकते। हां, वह इस कार्य में सहायक हो सकते हैं। परमात्मा जीवात्माओं को सुख व उनके कर्मों का भोग कराने के लिये उनके पूर्व जन्म के कर्मानुसार शरीर को बनाते है। यदि पूर्वजन्म में हमने आधे से अधिक शुभ व पुण्य कर्म किये हैं तो जीवात्मा को मनुष्य का शरीर मिलता है अन्यथा पशु, पक्षी आदि प्राणियों के शरीर मिलतें हैं। मनुष्य योनि उभय योनि हैं जहां वह शुभाशुभ कर्म करने के साथ पूर्व किये हुए कर्मों का फल भी भोगता है जबकि सभी मनुष्येतर योनियों में जीवात्माओं को अपने कर्मों का भोग करना होता है। हमारा मानव शरीर पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश इन पंच भौतिक तत्वों से बना है। यह शरीर अमर नहीं हो सकता है। जीवन और मृत्यु शाश्वत सत्य है जिसे कोई भी बदल नहीं सकता है। जीवन और मृत्यु (चिंतन) #कोराकागज #collabwithकोराकागज #KKPC16 #विशेषप्रतियोगिता