ढलती राते बोलती है बंद कमरों की कुंडी खटकाती है, बेजुबान सा राज सरेआम कह जाती है, जिसने निगाहें उठाई वो मिट गया, और जिसने झुकाई शर्म को वो जीत गया, अंधेरे झरोखों से चीखती सन्नाटे खोलती है, गौर से सुने ढलती राते बोलती है। चारपाई चौकड़ी चरखे से घूमे है, थिरकते लब जब शिकंद चूमते है, बेसुध हो कर चादर सिलवटों में मिलती है, रात रानी रात्रि मध्य ही तो खिलती है, दीवारें तो सब कैद कर बदनाम होती है, जरा गौर से सुनो तो ढलती राते बोलती है। कभी घुंघुरू कंगन कानों के कुंडल शोर करती है, ये सुबह की लाली हृदय में एकडोर करती है, तकिए का दर्द सुबह ये गवाही सबको करता है, किसी का दर्द है जो रोज़ अंखियों से बहता है, यादें समेट के कंबल की भी जागी आंखें भोर होती है, उन फर्श पर लिखी है जो ढलती राते बोलती है। चांद चौकोर चौकन्ना चांदनी खुद में समेटे है, जिसका अंतर्मुख एक प्यास में लपेटे है, जुगनू प्रकाश फैला के ये इशारा करते है, इक रात का कर्ज कैसे लम्हे भरते है, जिसकी सुन के मन ही मन हीर रोती है, जरा गौर से सुनो ढलती राते बोलती है। ढलती राते बोलती है #yqbaba #yqaestheticthoughts #yqraat #yqlove #yqbhaskar #yqpyar #yqhindi #yqdil