रात ये कहकर छेड़ती हैं कि पहले तो मेरा इंतज़ार करते थे, अब क्या हुआ ना तारो को देखते हो ना ही चांद से बतियाते हो, अब रात को क्या बयां करे कि अब घरों में छत हो गई हैं, ना रात होने का पता होता हैं ना सूर्य के प्रकट होने का अहसास, पर ए-रात तेरा साथ भी ग़ज़ब का रहा जब अकेले थे तो सुकुन तुझमें ही मिला था...! Rat ka intejar💫#poem