रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए यूँ चालाकियाँ तो हमें भी आती हैं, पर मोहब्बत में कभी चालाक न हुए, उसकी मासूमियत ने शामिल कर दिया हमें मोहब्बत ए जुर्म में , वरना हम पहले कभी इतने गुस्ताख़ न हुए...... #mohabbat, #Gustakh, #Masumiyat, #Shayar, #Sharif