नाराज़गी तेरी जान ही ना ले ले हमारी हम चाह रखते हैं बस तुम्हारी यूँ कब तक रूठ कर रहोगे हमसे कभी तो याद आएगी तुम्हे हमारी नाराजगी क्यों खामोश हो इस कदर क्या छुपा रखा है दिल में इतनी भी क्या नाराज़गी हमसे एक तेरे अपनों में हम भी शामिल हैं