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बिन उस की ज़िंदगी दर्द-ए-तन्हाई है, मेरी आँखों मे

बिन उस की ज़िंदगी दर्द-ए-तन्हाई है,
 मेरी आँखों में क्यू मौत सिमट आई है, 
 कहते हैं लोग इश्क़ को इबादत यारो,
  इबादत में फिर क्यू इतनी रुसवाई है

©Dil galti kr baitha h
  बिन उस की ज़िंदगी दर्द-ए-तन्हाई है,
 मेरी आँखों में क्यू मौत सिमट आई है, 
 कहते हैं लोग इश्क़ को इबादत यारो,
  इबादत में फिर क्यू इतनी रुसवाई है

बिन उस की ज़िंदगी दर्द-ए-तन्हाई है, मेरी आँखों में क्यू मौत सिमट आई है, कहते हैं लोग इश्क़ को इबादत यारो, इबादत में फिर क्यू इतनी रुसवाई है #Poetry

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