रोज़ के नून तेल लकड़ी में ज़िन्दगी यूंहीं ख़र्च होती गयी कॉपियों में रफ़्ता रफ़्ता हिसाब किताब बढ़ने लगा और शायरी कम होती गयी musings - 20/12/18