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कविता शीर्षक : बीबी ***************** एक दिन बीबी

कविता शीर्षक : बीबी
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एक दिन बीबी ने बोला, जी कितने प्यारे लगते हो
सूट, बूट, टाई में तुम तो, बच्चन साहब दिखते हो

मैंने बोला प्रिय तुम्हें, यह ख्याल अभी क्यों आया
हो लगा रही मस्का जो तुम, पता है उसकी माया

साफ़-साफ़ कह दो मुझसे, क्या, कैसी फरमाइश है
मुझ गरीब के जीवन की, यह कैसी आजमाइश है

बीबी बोली प्यार से इतने, अब पूछ रहे तो बता रही
ना नहीं कर जाना मुझसे, वरना करूंगी कुटाई यहीं 

दो साड़ी, कुछ चूड़ी कंगन, एक हार गले का लाना
कानों में हो सुंदर झुमके, जिन्हें पहन गाऊँ मैं गाना

मैंने बोला कुछ असंभव सा, प्रिय मुझे यह लगता है
अगले सत्र पूर्ण करूं, अगर तनख्वाह कुछ बढ़ता है

आग बबूला बीबी हो गई, मुख से ज़हर निकल पड़े
भोली सी सूरत भी उसकी, खतरनाक गुस्सैल लगे

शीत युद्ध अब जारी घर में,  है कुरुक्षेत्र मैदान बना
बिन बादल के बरखा घर में, ठहर ठहर है बरस रहा


नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार

©Niraj Srivastava
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