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करोना से पीड़ित ग़ज़ल भूका न मैं मर जाऊं कहीं

करोना से पीड़ित ग़ज़ल 
भूका न मैं मर  जाऊं  कहीं  हो  के  नज़र  बंद
नुसरत  के लिए  भेज  किसी  को  तु  खुदावंद 
चावल  है  मेरे घर  मैं  न  कुछ  और  है सामान
करता  हूं गुजारा  मैं फक़त  खा के  शकर क़ंद
रोटी  भी  मोयस्सर  नहीं  है  आज  नमक   से
खाते  थे  कभी   होटलौं  मैं   जाके   कलाकंद 
बच्चौं ने कहा  फोन  पे  अब्बू  न  करोष फिक्र 
रखलेते  हैं  हम   रौजा  है  बाज़ार  अगर   बंद
कहने  ये  लगी  मां  मेरी  सूरत  को  जो  देखी
बेटा  ये  तुझे  क्या  हुआ  पहले  था सेहत  मंद
मौला  जो  ये  आफत  है  इसे  ज़ल्दी  टला  दे
बेकार।  सभी  बैठे   हैं   जितने   हैं  हुनर   मंद 
यारब    हैं    परेशान    तेरे    बंदे श    कड़ोरों
मर  जाएंगे  भूके   ही  अगर    धंधे   रहे   बंद 
वह़शत से करोना कि जो फुर्सत  है मोयस्सर 
कहते  रहो  खुर्शीद  ख्यालौं  को  क़लम  बंद 
md khurshid purnavi

©Md Khurshid #corona effect poetry

#Thinking
करोना से पीड़ित ग़ज़ल 
भूका न मैं मर  जाऊं  कहीं  हो  के  नज़र  बंद
नुसरत  के लिए  भेज  किसी  को  तु  खुदावंद 
चावल  है  मेरे घर  मैं  न  कुछ  और  है सामान
करता  हूं गुजारा  मैं फक़त  खा के  शकर क़ंद
रोटी  भी  मोयस्सर  नहीं  है  आज  नमक   से
खाते  थे  कभी   होटलौं  मैं   जाके   कलाकंद 
बच्चौं ने कहा  फोन  पे  अब्बू  न  करोष फिक्र 
रखलेते  हैं  हम   रौजा  है  बाज़ार  अगर   बंद
कहने  ये  लगी  मां  मेरी  सूरत  को  जो  देखी
बेटा  ये  तुझे  क्या  हुआ  पहले  था सेहत  मंद
मौला  जो  ये  आफत  है  इसे  ज़ल्दी  टला  दे
बेकार।  सभी  बैठे   हैं   जितने   हैं  हुनर   मंद 
यारब    हैं    परेशान    तेरे    बंदे श    कड़ोरों
मर  जाएंगे  भूके   ही  अगर    धंधे   रहे   बंद 
वह़शत से करोना कि जो फुर्सत  है मोयस्सर 
कहते  रहो  खुर्शीद  ख्यालौं  को  क़लम  बंद 
md khurshid purnavi

©Md Khurshid #corona effect poetry

#Thinking
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