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शीर्षक तलाश ** दिल के अंदर क्यों इतना शोर होता है?

शीर्षक तलाश
**
दिल के अंदर क्यों इतना शोर होता है?
हां मुझे उस शोर की तलाश है।
क्यों इतनी बेचैनियां, क्यों इतनी घबराहट,
इस दिल में।
हां मुझे उस दिल की तलाश है।
स्याह रात में जब चाँद आसमान पर 
चमकता, तारों को साथ लेकर, 
और अचानक एक तारा टूट कर जमीन 
पर गिर रहा होता है,
उस समय लाखों लोग दुआ मांगते,
उस टूटेते हुए तारे का किसी को भी दर्द
नजर नहीं आता। 
वह कहां गिरा ,कहां चला गया ,
अपनों से बिछड़ कर वह कितना दुख 
पा रहा , किसी को नजर नहीं आता। 
बस नजर आता ,
कि हमारी सारी इच्छाएं पूरी हो जाए।
किसी को टूटते हुए देखकर वह अपनी
खुशी की इच्छा कैसे जाहिर कर सकते हैं।
फिर भी वह इतना खुश कैसे रह लेते है।
हां मुझे उस जगमगाहट खुशी की तलाश है।
आंधी तूफान गरजते हुए बादलों को खुद में
समा कर फिर भी मुस्कुराते रहते है।
कैसे वो इतना सब कुछ कर लेते हैं?
हा मुझे उस चाँद की तलाश है।
मेरे अंदर मचलता हुआ शोर करता हुआ ,
तूफान मचाता हुआऐ उस शोर की तलाश है।
या कहूँ तो मुझे खुद की तलाश है।

Deepti Garg 
स्वरचित रचना

©Deepti Garg 
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