असि का रूप न देखिए, जब धारण करै होशियार। अचल ऊँचा ना देखिए, जब उत्साह चढै़ पहाड़। सागर गहरा ना देखिए, जब नाविक लगावै नैया पार। मसि का रंग न देखिए, जब शब्दसृजन करै हृदय पार। गिरि छोटा, सिन्धु उथला,शस्त्र तिनका होय, जब कातिब रचै संसार।।