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#OpenPoetry मर्द, मर्द है तो क्या पत्थर ही है सिर

#OpenPoetry मर्द, 
मर्द है तो क्या पत्थर ही है सिर्फ़?
या मर्द है तो बुरा ही है सिर्फ़? 
क्या उसने जन्म नहीं लिया किसी औरत की पाक़ कोख़ से?
क्या वो एक इंसान नहीं जिसके सीने में भी दिल है? 

एक बाप, एक भाई, एक पति, 
सिर्फ़ हिंसा के रूप में ही क्यों देखते हो उसे? 

पूछ कर देखो कभी उस बाप की बिटिया से, की कितने नाज़ों से पाला है उसने उसे। 

पूछ कर देखो कभी उस भाई भी की बहन से भी, 
की कितने नखरे उठाते है फ़िर भी उसकी बिदाई में सबसे ज़्यादा आंसू बहाते हैं वो। 

पूछ कर देखो तो, उस पति की पत्नी से भी कभी, 
की करवा चौथ की रात को कितना तरसी है वो, सिर्फ़ अपने पति की एक झलक पाने के लिए। 
पूछ कर देखो तो एक बार, कि जिंदगी की ऐसी कौनसी घड़ी है जब साथ ना चलें हो मिलकर वो?

सौ बुराईयां तो सबमें है, 
पर साफ़ दिल तो उसमें भी है,
वो मर्द है जिससे एक औरत सम्पूर्ण है, 
वो मर्द ही है जो हँसता, रोता , गाता सब है मगर,
ज़िंदगी की ज़िम्मेदारियों के बोझ के तले, ख़ुद को पत्थर बना दिखाता है वो।। #OpenPoetry #male #maleempowerment #brother #father #husband
#OpenPoetry मर्द, 
मर्द है तो क्या पत्थर ही है सिर्फ़?
या मर्द है तो बुरा ही है सिर्फ़? 
क्या उसने जन्म नहीं लिया किसी औरत की पाक़ कोख़ से?
क्या वो एक इंसान नहीं जिसके सीने में भी दिल है? 

एक बाप, एक भाई, एक पति, 
सिर्फ़ हिंसा के रूप में ही क्यों देखते हो उसे? 

पूछ कर देखो कभी उस बाप की बिटिया से, की कितने नाज़ों से पाला है उसने उसे। 

पूछ कर देखो कभी उस भाई भी की बहन से भी, 
की कितने नखरे उठाते है फ़िर भी उसकी बिदाई में सबसे ज़्यादा आंसू बहाते हैं वो। 

पूछ कर देखो तो, उस पति की पत्नी से भी कभी, 
की करवा चौथ की रात को कितना तरसी है वो, सिर्फ़ अपने पति की एक झलक पाने के लिए। 
पूछ कर देखो तो एक बार, कि जिंदगी की ऐसी कौनसी घड़ी है जब साथ ना चलें हो मिलकर वो?

सौ बुराईयां तो सबमें है, 
पर साफ़ दिल तो उसमें भी है,
वो मर्द है जिससे एक औरत सम्पूर्ण है, 
वो मर्द ही है जो हँसता, रोता , गाता सब है मगर,
ज़िंदगी की ज़िम्मेदारियों के बोझ के तले, ख़ुद को पत्थर बना दिखाता है वो।। #OpenPoetry #male #maleempowerment #brother #father #husband