इश्क़ बिखरते हुए सासो में, कुछ हवाओ की कमी हो गई है, ठहरे हुए मोहोबट को, किसी से रूठने की आदत हो गई है। बेजुबान सी कली रात में, चांदनी रात खो गई है, हमारे इश्क को, किसी की नजर लग गई है। जुबान की बातो में, सच्चाई रुक सी गई है, धोका देने वालो को, अपने आप से शिकायत रहे गई हैं। बचे हुए लम्हों में, ज़िन्दगी का प्रारंभ होना बांध हो गया है, इश्क करना गुनाह समाज ने वालो को, सजा देने का समय आ गया है। Poet: basanta bhowmick poem: इश्क(love)......