ढली है शाम रात फिर लौटी है तन्हाई लेकर, फिर वही बेचैनी वही दर्द, सीने में दबी कोई बात लेकर! सोचा था, भूल जाऊंगा तुझे दिन के उजालों में "पवने" पर रोशनी ने भी ढुकरा दिया, मुझे मुस्कुराता देख कर। ©Pawan Singh Prajapati ढली है शाम रात फिर लौटी है तन्हाई लेकर, फिर वही बेचैनी वही दर्द, सीने में दबी कोई बात लेकर! सोचा था, भूल जाऊंगा तुझे दिन के उजालों में "पवने" पर रोशनी ने भी ढुकरा दिया, मुझे मुस्कुराता देख कर।