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शाम से आंख में नमी सी है आज फिर आपकी कमी सी है । व

शाम से आंख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है ।
वक़्त रहता नहीं कभी रुककर 
इसकी आदत भी आदमी सी है।
दफ़्न कर दो मुझे की सांस मिले
नब्ज कुछ देर से थमी सी है। 
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी 
एक तसलीम लाज़मी सी है।

©Shivam Tiwari शाम से आंख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है ।
वक़्त रहता नहीं कभी रुककर 
इसकी आदत भी आदमी सी है।
दफ़्न कर दो मुझे की सांस मिले
नब्ज कुछ देर से थमी सी है। 
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी 
एक तसलीम लाज़मी सी है।
शाम से आंख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है ।
वक़्त रहता नहीं कभी रुककर 
इसकी आदत भी आदमी सी है।
दफ़्न कर दो मुझे की सांस मिले
नब्ज कुछ देर से थमी सी है। 
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी 
एक तसलीम लाज़मी सी है।

©Shivam Tiwari शाम से आंख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है ।
वक़्त रहता नहीं कभी रुककर 
इसकी आदत भी आदमी सी है।
दफ़्न कर दो मुझे की सांस मिले
नब्ज कुछ देर से थमी सी है। 
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी 
एक तसलीम लाज़मी सी है।