White सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थी और एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी। मैंने धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार चिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी? मैंने घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली दोगी— तिनके की नोक-भर? शंखपुष्पी से पूछा: उजास दोगी— किरण की ओक-भर? मैंने हवा से मांगा: थोड़ा खुलापन—बस एक प्रश्वास, लहर से: एक रोम की सिहरन-भर उल्लास। मैंने आकाश से मांगी आँख की झपकी-भर असीमता—उधार। सब से उधार मांगा, सब ने दिया । यों मैं जिया और जीता हूँ क्योंकि यही सब तो है जीवन— गरमाई, मिठास, हरियाली, उजाला, गन्धवाही मुक्त खुलापन, लोच, उल्लास, लहरिल प्रवाह, और बोध भव्य निर्व्यास निस्सीम का: ये सब उधार पाये हुए द्रव्य। ©"SILENT" #Sad_shayri I_surbhiladha