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हाँ... सारी गलती मेरी है मैं लड़की जो हूँ जनेऊ तोड़

हाँ... सारी गलती मेरी है  मैं लड़की जो हूँ जनेऊ तोड़ फेंका तुमने, हम अब भी मंगलसूत्र पहनती है।

 शिखा कटवा के फेंक दी कब की, हम अब भी चोटियां करती है। 
तुम त्याग दिए चंदन, रोली को,  हम अब भी मांग सजाती है।
तुम छोड़ दिए कड़े कलावे, हम अब भी कंगन खनकाती है। 

तुम भूल गए धोती को बाँधना,  भी हम अब भी पल्लू लहराती है।
बंधन सारे तुमने तोड़े, फिर भी हम स्वछंद कहाती है।

धर्म धर्म चिल्लाने वाले, मंदिर जाते निकर में
क्या एक स्त्री देखी है तुमने, मंदिर बैठी बिकिनी में?? 


धर्म, त्यौहार, सब स्त्री भरोसे, फिर भी हम संस्कृति का ह्रास कराती है??

©Pratibha Singh Rathore
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