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तुमने पहली ही सीढ़ी पर, प्रेम की परिभाषा को, शरीर स

तुमने पहली ही सीढ़ी पर,
प्रेम की परिभाषा को,
शरीर से बांध दिया कि,
प्रेम दो अलग अलग अलग व्यक्तियों के बीच मे घटने वाली बात है,
बस इतना कहो,
कि अगर प्रेम है तो अलगाव कैसा?
और अलगाव है तो प्रेम कैसा?
फिर उन सिसकियों की कौंन परिभाषा कहे?
उन चुप्पियों को कौन अपनी आशा कहे?

शरीर नही,
मन और हृदय पर पड़े,
दर्द और तकलीफ़ की कौन सीमा गहे,
वह कौन था,
जिसने प्रेम को शरीर से,
शरीर से प्रेम की परिभाषा को,
नया नाम,
नयी उमीदों में एक चुभन को पहचान दिया।

बस इतना ही समझा दो,
की कैसे प्यार परमात्मा नही,
फिर मीरा किस धुन पर नाची थी,
कबीर कैसे बाबले हुए फिरते थे,
किसने चुपके से हर जर्रे को,
ख़ुदा और हर लफ़्ज को बंदगी का,
एक आयाम दिया,
फिर ख़ुदा इश्क़ नही,
तो खुदाई में बंदगी कहाँ?

©Prashant Roy
  प्रेम की परिभाषा Rakesh Srivastava Suruchi Roy
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Prashant Roy

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प्रेम की परिभाषा @Rakesh Srivastava @Suruchi Roy #कविता

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