चली गोरी छोरी सुनहरे सपनो की नगरी प्रेम नगर का राजा सजा के फूलों की डोली लोक लज्जा में लिपटी चुनरी माथे पर चमचमाती बिंदी हाथो में खनखनाती चूड़ी पैरो में पड़ी बेड़ी इस घर से चली उस घर डोली कभी खिलखिलाती,कभी मुस्कुराती कभी डरी सहमी सी गोरी सोच विचार में डूबी एक छोरी गोरी