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चली जाती थी राह में, कहां जाऊं ये बिन सोचे। स्वयं


चली जाती थी राह में,
कहां जाऊं ये बिन सोचे।
स्वयं ही,हारे से कदम,
मंदिर प्रांगण में जा पहुंचे।
देखकर संतों की सभा,
दिल को एक सुकून मिला।
साध्वी मां को शीश नवाऊं,
ऐसा मन में दीप जला।
एहसास हुआ मानों प्यारे,
सतगुरु का शुभाशीष मिला।
कष्ट मिटेंगे अब सारे,यह सोच 
ह्रदय का पुष्प खिला।

©Deepa Didi Prajapati 
  #संत_समाज_की_जय