सुनामियाँ नहीं आती केवल समंदरों में कुछ प्रलय आती है गिर कंदराओ में चट्टाने टूट बिखर पड़ती है प्रकृति तांडव दिखाती है मुट्ठी से फिसलती रेत की तरह ये क़ीमती जान चली जाती है भरभरा गिर पड़ती है बहुमंजिला इमारते आदमी की क्या बिसात रह जाती है फूल से तोड़ दी हो पंखुडियाँ जैसे फिर कभी नहीं जुड़ पाती हैं। किसी की संताने किसी की माँ हमेशा के लिए बिछड़ जाती है प्रलय और विध्वंस के निशान चारों तरफ़ नज़र आते हैं तबाही के साथ कुछ सपने कुछ अरमान सब के सब हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं कचोटता है हृदय स्वयं की हुई गलतियों पर टूटे सपने काँच की तरह बरबस जख़्म कुरेदते हैं मिट जाता है सब कुछ बाद में हाथ मलता रह जाता है पहुँचाकर प्रकृति को नुक़सान बाद में मानव पछताता है। #आपदा #अनाम #अनाम_ख़्याल #lifelessons #केदारनाथ_आपदा