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#यादें_राहत_इंदौरी #दुनिया_ए_फानी से हर चीज़ फना

#यादें_राहत_इंदौरी 

#दुनिया_ए_फानी से हर चीज़ फना हाेने वाली है 
आज नहीं ताे कल
   हर किसी काे जाना है 
दुनिया एक टमप्रेरी ठिकाना है 

मेरा मानना है की इंसान मरता है नाकि जेहन 
जेहन से मुराद है जब इंसान दुनिय ए फानी से कूच कर जाता है अगर उसने अपने आप काे किसी आैर शक्ल में ज़िन्दा रखना चाहा है ताे वाे है जे़हन इंसान काे हाजाराे साल ज़िन्दा रखता है ज़ेहन 
वाे शख्स ज़िन्दगी आैर माैत के बीच के फासले में इतना कुछ कर जाता की हमेशा वाे एक शख्सियत के रूप जाना पहचाना याद किया जाता है 
शख्स से शख्सियत बनने का हुनर अगर मालूम है वाे है जनाबे डॉ राहत इंदौरी जाे कल अचानक हम सब काे इस फानी दुनिया से छाेड़ कर कूच कर गए 
राहत साहब एक एेसा ज़ेहन जाे कभी किसी मसनद किसी सरकार किसी हुकूमत के आगे सर आैर कलम खम नहीं करने वाले में शुमार है

मसनद से याद आ रहा है 
कि इमरजेंसी का जमाना था सरकार काे ललकारते हुए उन्होंने लिखा कि 

जाे आज #साहिब_ए_मसनद है कल नहीं हाेगें 
   #किरायेदार है जाती मकान थाेड़ी है 

राहत साहब सम्प्रदायिक ताकताे काे मुखातिब करते हुए कहते कि 

 सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में 
 किसी के बाप का #हिन्दाेस्तान थाेड़ी है 

राहत साहब यही नहीं रूकते आगे उन्हें अपने वतन ए अज़ीज हिन्दाेस्तान से इतनी मुहब्बत है कि कहते हैं 

 मैं जब मर जाऊ मेरी अलग पहचान लिख देना 
लहू से मेरी पेशानी पर हिन्दाेस्तान लिख देना 

राहत साहब आप जैसा अब ढूढ़ने से मुशायरे के स्टेज पर राहत नहीं मिलने वाला आप हिन्दाेस्तान का वाे स्तम्भ है जिसे न कभी काेई सरकार न हुकूमत हिला पाई 

अल्लाह आप की मगफिरत फरमाये

शाह आलम बागी
#यादें_राहत_इंदौरी 

#दुनिया_ए_फानी से हर चीज़ फना हाेने वाली है 
आज नहीं ताे कल
   हर किसी काे जाना है 
दुनिया एक टमप्रेरी ठिकाना है 

मेरा मानना है की इंसान मरता है नाकि जेहन 
जेहन से मुराद है जब इंसान दुनिय ए फानी से कूच कर जाता है अगर उसने अपने आप काे किसी आैर शक्ल में ज़िन्दा रखना चाहा है ताे वाे है जे़हन इंसान काे हाजाराे साल ज़िन्दा रखता है ज़ेहन 
वाे शख्स ज़िन्दगी आैर माैत के बीच के फासले में इतना कुछ कर जाता की हमेशा वाे एक शख्सियत के रूप जाना पहचाना याद किया जाता है 
शख्स से शख्सियत बनने का हुनर अगर मालूम है वाे है जनाबे डॉ राहत इंदौरी जाे कल अचानक हम सब काे इस फानी दुनिया से छाेड़ कर कूच कर गए 
राहत साहब एक एेसा ज़ेहन जाे कभी किसी मसनद किसी सरकार किसी हुकूमत के आगे सर आैर कलम खम नहीं करने वाले में शुमार है

मसनद से याद आ रहा है 
कि इमरजेंसी का जमाना था सरकार काे ललकारते हुए उन्होंने लिखा कि 

जाे आज #साहिब_ए_मसनद है कल नहीं हाेगें 
   #किरायेदार है जाती मकान थाेड़ी है 

राहत साहब सम्प्रदायिक ताकताे काे मुखातिब करते हुए कहते कि 

 सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में 
 किसी के बाप का #हिन्दाेस्तान थाेड़ी है 

राहत साहब यही नहीं रूकते आगे उन्हें अपने वतन ए अज़ीज हिन्दाेस्तान से इतनी मुहब्बत है कि कहते हैं 

 मैं जब मर जाऊ मेरी अलग पहचान लिख देना 
लहू से मेरी पेशानी पर हिन्दाेस्तान लिख देना 

राहत साहब आप जैसा अब ढूढ़ने से मुशायरे के स्टेज पर राहत नहीं मिलने वाला आप हिन्दाेस्तान का वाे स्तम्भ है जिसे न कभी काेई सरकार न हुकूमत हिला पाई 

अल्लाह आप की मगफिरत फरमाये

शाह आलम बागी